संक्रमण से मौतें
- संपादकीय
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K.W.N.S.-इस अध्ययन में यह सामने आया कि वर्ष 2019 में तैंतीस तरह के सामान्य जीवाणुओं के संक्रमण से करीब चौदह लाख लोग मारे गए और इनमें से छह लाख अस्सी हजार लोगों की मौत का कारण सिर्फ पांच तरह के जीवाणुओं के होने वाला संक्रमण था। वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया में सबसे ज्यादा मौतों का दूसरा बड़ा कारण जीवाणु संक्रमण रहा। यानी वर्ष 2019 में दुनियाभर में सतहत्तर लाख मौतें तैंतीस तरह के जीवाणुओं से हुर्इं।
भारत के संदर्भ में यह कम चिंताजनक स्थिति नहीं है। जिन पांच जीवाणुओं के संक्रमण से लाखों लोग मौत के मुंह में चले गए, उनमें निमोनिया, मूत्र संक्रमण और टायफायड जैसे रोगों के मामले कहीं ज्यादा हैं। आमतौर पर ये बीमारियां हमारे रहन-सहन और खानपान से ही होती हैं। इससे पता चलता है कि स्वास्थ्य, रहन-सहन, खानपान, प्रदूषण, स्वच्छ पेयजल और शौचालयों की उपलब्धता के मोर्चे पर हम कहां खड़े हैं। और फिर ये आंकड़े तो वे हैं जो कहीं न कहीं दर्ज रहे होंगे। भारत के ग्रामीण और दूरदराज इलाकों में तो ऐसी संक्रामक बीमारियों से न जाने कितनी मौतें हर साल हो जाती हैं, जो सरकारी रिकार्ड में दर्ज भी नहीं हो पातीं!
ऐसे अध्ययन और शोध सिर्फ चौंकाते ही नहीं हैं, बल्कि सचेत भी करते हैं कि हमें किस मोर्चे पर क्या काम करना है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि सामान्य संक्रमणों से भी मरने वालों का आंकड़ा कम नहीं है। इससे पता चलता है कि लोगों को मामूली बीमारियों के इलाज भी आसानी से मुहैया नहीं हो पाते हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति आज भी किस हाल में है, यह किसी से छिपा नहीं है। कहने को देश में बड़े-बड़े पांच सितारा और निजी अस्पतालों की भरमार होती जा रही है, लेकिन आबादी के बड़े हिस्से की यहां तक पहुंच ही नहीं है।
सरकारी अस्पतालों में मरीजों के बोझ से लेकर दूसरी अनगिनत समस्याएं हैं। हजारों लोगों पर एक डाक्टर, एक बिस्तर दशकों से चली आ रही समस्या है। अस्पतालों में उपकरणों और दवाइयों की भारी कमी हमेशा की बीमारी है। जिला अस्पतालों से लेकर ग्रामीण इलाकों में बने प्राथमिक और सामुदायिक चिकित्सा केंद्रों की हालत कौन नहीं जानता। यह भी जगजाहिर है ही कि चिकित्सा सेवा का कर्म किस तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा चुका है। जाहिर है, ऐसे में सामान्य संक्रमण से भी लोग मरेंगे ही!
संक्रामक रोग फैलाने वाले जीवाणुओं के पनपने और फैलने का बड़ा कारण स्वच्छता से भी जुड़ा है। भारत के ज्यादातर शहरों में सीवर समस्या से लेकर कूड़े के पहाड़ तक गंभीर संकट का कारण बने हुए हैं। घरों में नलों के जरिए पहुंचाए जाने वाले पानी में सीवर लाइनों का पानी और कीड़े मिलने जैसी शिकायतें इतनी आम हैं कि स्थानीय निकाय और प्रशासन इन्हें समस्या के रूप में देखते ही नहीं। देश की राजधानी दिल्ली में तीन बड़े कूड़े के पहाड़ करीब चार दशकों से खड़े हैं, जो समय-समय पर धधकते रहते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लाखों लोग किस तरह के प्रदूषण में रहने को मजबूर हैं। ऐसे में बीमारियां नहीं फैलेंगी तो क्या होगा? अगर सामान्य जीवाणुओं के संक्रमण से लाखों लोग मर रहे हैं तो निश्चित ही इसके लिए जिम्मेदार हमारे नीति-नियंता और दोषपूर्ण नीतियां हैं। संक्रमित बीमारियों पर काबू पाना है तो इसके लिए व्यवस्था को संक्रमणमुक्त करना होगा।