कन्या दान और चारधाम तीर्थ के समान है सीता नवमी
- धर्म आध्यात्म
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पंचायत तंत्र- । जनक नंदिनी एवं प्रभु श्रीराम की अर्द्धांगिनी सीताजी का वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को प्राकट्य हुआ था। यह दिन जानकी नवमी या सीता नवमी के रूप में देशभर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सर्वमंगलदायिनी माता सीता का व्रत करने वाली महिलाओं के अंदर धैर्य, त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते है साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ता है। महिलाओं को अपने पति की दीर्घायु और संतान के साथ पारिवारिक शांति एवं आरोग्यता के लिए भगवान श्रीराम-जानकी की पूजा जरूर करनी चाहिए ।
धर्मशास्त्रों के अनुसार इस पावन पर्व पर जो भी भगवान राम सहित माँ जानकी का व्रत-पूजन करता है उसे पृथ्वी दान का फल एवं समस्त तीर्थ भ्रमण का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है एवं समस्त प्रकार के दुखों, रोगों व संतापों से मुक्ति मिलती है। सीता नवमी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। कहते हैं इस दिन दिया गया दान कन्या दान और चारधाम तीर्थ के बराबर माना जाता है। सूर्य, अग्नि एवं चन्द्रमा का प्रकाश हैं सीता
सीता नवमी शुभ फलदायी है क्योंकि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु तो माता सीता लक्ष्मी का स्वरूप हैं। सीता नवमी के दिन वे धरा पर अवतरित हुई इस कारण इस सौभाग्यशाली दिन जो भी माता सीता की पूजा अर्चना प्रभु श्री राम के साथ करता है उन पर भगवान श्री हरि और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। माता सीता अपने भक्तों को धन, स्वास्थ्य, बुद्धि और समृद्धि प्रदान करती हैं। माँ सीता भूमि रूप हैं,भूमि से उत्पन्न होने के कारण उन्हें भूमात्मजा भी कहा जाता है। माता सीता के स्वरूप सूर्य, अग्नि और चंद्र माने जाते हैं। चन्द्रमा की किरणें विभिन्न औषधिओं को रोग निदान का गुण प्रदान करती हैं। ये चंद्र किरणें अमृतदायिनी सीता का प्राणदायी और आरोग्यवर्धक प्रसाद है। इस दिन माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा के साथ चंद्र देव की पूजा भी जरूर करनी चाहिए।
माँ सीताजी ने ही हनुमानजी को उनकी सेवा-भक्ति से प्रसन्न होकर अष्ट सिद्धियों तथा नव निधियों का स्वामी बनाया । रामचरितमानस में तुलसी दास जी ने सीताजी की वंदना करते हुए उन्हें उत्पत्ति,पालन और संहार करने वाली,क्लेशों को हरने वाली एवं समस्त जगत का कल्याण करने वाली राम वल्लभा कहा है ।अनेकों ग्रंथ उन्हें जगतमाता,एकमात्र सत्य,योगमाया का साक्षात स्वरुप व समस्त शक्तियों की स्त्रोत तथा मुक्तिदायनी कहकर उनकी आराधना करते हैं । सीताजी क्रिया-शक्ति,इच्छा-शक्ति और ज्ञान-शक्ति,तीनों रूपों में प्रकट होती हैं ।
इस दिन सुहाग की वस्तुओं का करें दान
रोली,अक्षत,कुमकुम,मोली एवं लाल और पीले पुष्प व मिठाई से भगवान राम और उनकी प्राणप्रिया सीताजी की पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके भक्तिभाव से पूजा करें।इस दिन श्रीराम-जानकी की पूजा में तिल या घी का दीपक जलाना अतिशुभ फलदायक है।सीता नवमी के दिन माता सीता को सोलह श्रृंगार एवं लाल चुनरी अर्पित करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जिन्हें संतान की कामना है वह इस दिन सीता स्रोत का पाठ जरूर करें। इसके बाद सियाराम का भोग लगाकर इन मन्त्रों का जाप करें।
ॐ सीतायाः पतये नमः ।।
और श्रीसीता-रामाय नमः।।
ऐसे प्रकट हुई देवी सीता
सीता मां के जन्म से जुड़ी कथा का रामायण में उल्लेख किया गया है। इस कथा के अनुसार एक बार मिथिला राज्य में बहुत सालों से बारिश नहीं हो रही थी। वर्षा के अभाव में मिथिला के निवासी और राजा जनक बहुत चिंतित थे। उन्होंने ऋषियों से इस विषय़ पर मंत्रणा की तो उन्होंने कहा कि यदि राजा जनक स्वयं खेत में हल चलाएं तो इन्द्र देव प्रसन्न होंगे और बारिश होगी। राजा जनक ने ऋषियों की बात मानकर हल चलाया। हल चलाते समय उनका हल एक कलश से टकराया जिसमें एक सुंदर कन्या थी। राजा निःसंतान थे इसलिए वह बहुत हर्षित हुए और उन्होंने उस कन्या का नाम सीता रखा। सीता को जानकी और मिथिलेश कुमारी इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। इस प्रकार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता प्रकट हुईं थीं।