वायु मार्ग से लंका पहुंचने के बाद हनुमान जी ने वहां की सारी सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया था। और मुख्य द्वार से बहुत ही सूक्ष्म शरीर बना कर प्रवेश करने लगे थे। लेकिन वहां की रक्षा करने वाली लंकिनी राक्षसी उन्हें पहचान गईं। समुद्र से उड़ते हुए हनुमान जी लंका पहुंच तो गए लेकिन उनके सामने समस्या आई कि लंका में प्रवेश कैसे किया जाए। बुद्धिमान हनुमान जी ने सबसे पहले वहां की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया और उसके बाद वे जान गए कि लंका में प्रवेश करना बेहद ही कठिन है। इसके बाद उन्होंने प्रभु श्रीराम को याद करते हुए मच्छर के समान अपना सूक्ष्म शरीर किया और प्रवेश करने का निर्णय लिया।
लंकिनी ने हनुमान जी को पहचाना
लंका में मुख्य प्रवेश द्वार पर तैनात लंकिनी राक्षसी ने उन्हें इतने छोटे रुप में पहचान लिया और कहा कि मेरी आज्ञा को बिना कोई नगर में प्रवेश नहीं कर सकता। जो भी लोग चोरी करने आते हैं, मैं उन्हें अपना आहार बना लेती हूं। इसके बाद हनुमान जी ने तुरंत लंकिनी को एक जोरदार घूंसा मारा। वह बेहोश होकर गिर पड़ी। और उसके मुंह से खून आने लगा। होश में आने पर वह हनुमान जी को पहचान कर बोली आप तो श्रीराम के दूत है। अब राक्षसों के विनाश का समय आ गया है।
लंकिनी ने बताई श्रीराम के नाम की महिमा
लंकिनी ने हनुमान जी को पहचानने के बाद कहा कि अयोध्यापुरी के राजा रघुनाथ जी को ह्र्दय में रख कर आप लंका में प्रवेश कीजिए और अपने सब काम कीजिए। श्रीराम की कृपा से विष भी अमृत बन जाता है। शत्रु मित्रता करने लगते है, समुद्र गाय के खुर के समान हो जाता है। अग्नि में भी शीतलता आ जाती है। बस इतना सुनते ही हनुमान जी भगवान का स्मरण कर छोटा रुप रखते है और नगर में प्रवेश कर जाते है।
हनुमान जी ने देखी लंका की दशा
हनुमान जी ने लंका में प्रवेश करने के बाद कई प्रकार के महल देखे। उन्होंने वह महल भी देखा जहां रावण सो रहा था। लेकिन उस महल में कहीं भी जानकी जी दिखाई नहीं दे रही थीं। इसी बीच हनुमान जी की नजर एक ऐसे महल पर गई जो अलग तरह से बना हुआ था। वहां पर अलग से भगवान का मंदिर भी बना था। उस महल में भगवान श्रीराम के धनुष बाण के चिन्ह भी अंकित थे।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि उस महल की शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। उस स्थान पर तुलसी के पौधों के समूह को देखकर हनुमान जी को अत्यंत प्रसन्नता हुई। उन्होंने सोचा कि लंका तो राक्षसों का निवास स्थान है, यहां पर सज्जन पुरुष कैसे हो सकते हैं। इसी बीच विभीषण सोकर उठे और उन्होंने श्री राम के नाम का उच्चारण किया। इतना सुनते ही हनुमान जी ने विभीषण से जाकर परिचय करने का निश्चय किया।