Friday, 11 April 2025

मल्टीमीडिया डेस्क । सियासत में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए चुनावी अखाड़े में ( Loksabha Election 2019) जोर-आजमाइश जारी है। नेता अपनी जीत के लिए जनता के बीच से लेकर देवी-देवताओं के दरबार तक में हाजिरी दे रहे हैं। हर उम्मीदवार की ख्वाहिश बेहतर प्रदर्शन की है। हर किसी को दरकार एक अदद जीत की है। ऐसे में जीत के पैमाने को हर कसौटी पर कसा जा रहा है। जनता-जनार्दन की मान-मनौव्वल की जा रही है और मंदिरों में मत्था टेका जा रहा है,लेकिन कुछ सिद्धक्षेत्रों में इन दिनों नेताओं का तांता लगा हुआ है। देवी का एक ऐसा ही दरबार मध्य प्रदेश में उज्जैन से करीब 60 किलोमीटर दूर आगर जिले के नलखेड़ा में है। मां पीतंबरा के इस मंदिर में माता बगलामुखी की आराधना से शत्रुनाश और विजय का आशीर्वाद मिलता है।
देवी की सेवा में समर्पित पंडित आत्माराम शर्मा और पंडित सागर शर्मा ने बताया कि माता बगलामुखी के मंदिर में इन दिनों हवन की अग्नि सूर्योदय के साथ ही प्रज्वलित हो जाती है। माता के इस दरबार में रात्रि में हवन का भी प्रावधान है। वैसे तो देश विदेश से यहां लोग मनोकामना सिद्धि और सुख-समृद्धि के लिए शीश झुकाने आते हैं, लेकिन इन दिनों नेता यहां पर बड़ी संख्या में शत्रुनाश और अपनी विजय के लिए हवन करवा रहे हैं।
इस संबंध में पंडित सागर शर्मा ने बताया कि राजनेताओं के यहां आने और हवन करवाने का सिलसिला चुनाव की आहट के साथ ही शुरू हो गया था, जो नवरात्रि के दौरान अपने चरम पर है। चुनाव की वजह से यहां पर पिछले करीब एक साल से हवन करने वाले नेताओं का तांता लगा हुआ है। हवन करने वाले नेताओं में देश के हर कोने के नेता शामिल है। यदि कोई नेता अपनी पहचान छिपाना चाहता है तो वह पंडित के द्वारा या अपने प्रतिनिधि के द्वारा भी हवन का संकल्प छोड़कर हवन की प्रक्रिया को पूर्ण कर सकता है।
विजय का वरदान देती है मां बगलामुखी
पंडित आत्माराम शर्मा का कहना है कि माता बगलामुखी का त्रिशक्ति स्वरूप मंदिर भारत में इसके अलावा कहीं नहीं है। मान्यता है कि मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां महालक्ष्मी और बाएं मां सरस्वती विराजमान हैं। धरती पर माता बगलामुखी तीन स्थानों पर विराजमान है, जो दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं।
द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देश भर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत और भक्तगण तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। आमजन भी अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ-हवन और पूजा-पाठ करवाते हैं। कहा जाता है कि मां भगवती बगलामुखी का यह मंदिर बीच श्मशान में बना हुआ है।
दस महाविद्या में है आठवीं महाविद्या है देवी
मान्यता के अनुसार माता बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं। इनको माता पीताम्बरा भी कहते हैं। ये स्तम्भन की देवी हैं। शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी आराधना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है। ।
माँ बगलामुखी की चमत्कारी और सिद्ध प्रतिमा की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नही मिलता है। मान्यता है की यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है. कहा जाता है की महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें माँ बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था। उस समय सम्राट युधिष्टिर ने लक्ष्मणा नदी, जो अब लखुंदर नदी कहलाती है के किनारे पर बैठकर मां बगलामुखी की आराधना की थी और कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। माता पितवर्णी है इसलिए माता को पीली चीजों को समर्पित किया जाता है। पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले मिष्ठान्न आदि।

भगवान राम के परम भक्‍त श्री हनुमान बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करने वाले माने जाते हैं। भक्‍त बड़े प्रेम से अपने आराध्‍य श्री हनुमान को सिंदूर चढ़ाते है। मान्‍यता है कि सिंदूर चढ़ाने से बजरंग बल‍ि प्रसन्‍न होते हैं। मान्‍यता है कि ऐसा करने से भक्‍तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
एक कथा के अनुसार, एक दिन हनुमान जी माता सीता के कक्ष में पहुंचे थे। उन्होंने देखा कि माता सीता लाल रंग की कोई चीज अपनी मांग में सजा रही हैं। हनुमान जी ने उत्सुक हो कर माता सीता से पूछा यह क्या है, जो आप अपनी मांग में सजा रही हैं। इस पर माता सीता ने कहा कि, यह सौभाग्य का प्रतीक सिंदूर है। इसे मांग में सजाने से मुझे रामजी का स्नेह प्राप्त होता है और उनकी आयु लंबी होती है। यह सुनकर हनुमान जी से रहा न गया और उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया। हनुमान मन ही मन विचार करने लगे कि इससे तो मेरे प्रभु श्रीकाम की आयु बहुत लंबी हो जाएगी और वह मुझे भी माता सीता की तरह स्नेह करेंगे।
सिंदूर लगे हनुमान जब प्रभु राम की सभा में गए तो लोग उन्हें देखकर हैरान रह गए। प्रभु राम ने हनुमान से पूरे शरीर पर सिंदूर लगाने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि, इससे आप अमर हो जाएंगे और मुझे भी माता सीता की तरह आपका स्नेह मिलेगा। हनुमान जी की यह बात सुनकर प्रभु राम भाव विभोर हो गए और उन्होंने हनुमान को गले लगा लिया। उसी समय से हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है और सिंदूर अर्पित करने वाले पर हनुमान जी काफी प्रसन्न रहते हैं।
महिलाएं हनुमान जी पर सिंदूर न चढ़ाए। वे केवल अपने पति, पुत्र और देवी मां को ही सिंदूर लगा सकती हैं। वे सिंदूर के स्थआन पर लाल रंग के फूल चढ़ा सकती हैं। महिलाएं हनुमान जी पर चढ़ाया हुआ सिंदूर मांग में न लगाकर अपनी चूड़ियों में लगाएं। बता दें कि, हनुमान जी को सिंदूर और चमेली का तेल लगाने से रोग, शोक और ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं।
जब भी किसी जरूरी काम से बाहर जाए तो हनुमान जी के चरणों का सिंदूर अवश्य अपने माथे पर लगाएं। इससे आपकी बुद्धि कुशाग्र होगी और अनचाहे संकट टल जाएंगे। मंगल ग्रह को अपने अनुकुल करने के लिए हनुमान जी को सिंदूर अर्पित करें।

मल्टीमीडिया डेस्क। नौ शक्तियों के मिलन को ही नवरात्रि कहते हैं। ज्यादातर लोग चैत्र और शारदीय नवरात्रि के बारे में जानते हैं और उस दौरान पूजा व व्रत करते हैं। मगर, इसके अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी साल में होती हैं, जिनमें खासतौर पर गुप्त सिद्धियां पाने के लिए पूजा-अर्चना की जाती है। माघ और आषाढ़ में मनाई जाने वाली इन दोनों गुप्त नवरात्रि में साधक विशेष साधना करते हैं। माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि में पूजा अर्चना करने से अपार सफलता मिलती है।
गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवियां
आम तौर पर जहां नवरात्र में जहां नौ देवियों की विशेष पूजा का प्रावधान है, वहीं गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्या की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्र में पूजी जाने वाली 10 महाविद्याओं में मां काली, मां तारा देवी, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला देवी हैं। इस नवरात्र में में तंत्र और मंत्र दोनों के माध्यम से भगवती की पूजा की जाती है।
ऐसे करें शक्ति की साधना
गुप्त नवरात्र में मां भगवती की साधना गुप्त रूप से देर रात में की जाती है। तन और मन से पवित्र होकर माता की विधि-विधान से फल-फूल आदि चढ़ाने के बाद सरसों के तेल का दीपक जलाकर ॐ दुं दुर्गायै नमः मंत्र का जाप करें। आद्या शक्ति की इस साधना में लाल रंग के फूल, लाल सिंदूर और लाल रंग की चुनरी का प्रयोग करें। इससे जुड़ी साधना-आराधना को भी लोगों से गुप्त रखा जाता है। मान्यता है कि साधक जितने गुप्त तरीके से देवी की साधना करता है, उस पर भगवती की उतनी ही कृपा बरसती है।
इन मंत्रों का करें जाप
'ऊं ऐं हीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे नम:'
'ऊं ऐं महाकालाये नम:'
'ऊं हीं महालक्ष्मये नम:'
'ऊं क्लीं महासरस्वतये नम:'
गुप्त नवरात्रि के दौरान न करें ये काम
इन दिनों में नाखून, बाल और दाढ़ी बनवाएं न बनवाएं।
कन्याओं को झूठा भोजन न दें। मांस-मदिरा से बचे।
झूठ नहीं बोलें और किसी का अपमान नहीं करें।

मल्टीमीडिया डेस्क। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार मानव जीवन को सोलह संस्कारों में पिरोया गया है। पहला संस्कार गर्भाधान संस्कार है जिसके जरिए मानव जीवन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इसी तरह दूसरे संस्कारों को उम्र के हिसाब से पूरा करता हुआ मानव जीवन सोलहवे संस्कार यानी अंतिम संस्कार की ओर बढ़ता है और आत्मा के शरीर छोड़ने के साथ ही मानव जीवन का अंतिम संस्कार पूरा हो जाता है।
लेकिन इहलोक से परलोक में प्रस्थान करने के बाद भी इंसान को विधिपूर्वक अंतिम विदाई दी जाती है। इसमें सबसे प्रमुख है दाह संस्कार या नश्वर शरीर का पंचतत्व में विलिन होना। इसके शास्त्रों में नियम दिए गए हैं उन नियमों के अनुसार अग्निदाह करने पर मानव सभी तरह के मोहमाया और जीवन के जंजाल से मुक्त होकर श्रीहरी के चरणों में जगह पा जाता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार मानव की मृत्यु किसी भी समय हो सकती है यह परमात्मा के हाथ में है, लेकिन उसका अंतिम संस्कार सिर्फ दिन के समय यानी सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही किया जा सकता है। दिन ढलने के बाद यानी रात में मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के लिए सूर्योदय का इंतजार करना चाहिए।
गरुड़ पुराण के अनुसार यदि अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद किया जाता है तो मरने वाले को परलोक में कष्ट भोगने पड़ते और अगले जन्म में उसके अंगों में खराबी हो सकती है या कोई दोष हो सकता है। इसी कारण सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार उचित नहीं माना गया है। मोक्ष के लिए और मृतात्मा की मुक्ति के लिए दिन में अंतिम संस्कार का विधान है।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि दिन ढलने के साथ ही स्वर्ग के कपाट बंद हो जाते हैं और नर्क के खुल जाते हैं। इसलिए दिन में अंतिम संस्कार करने पर मृतात्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और रात के समय अंतिम संस्कार करने पर नर्क की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में यह भी विधान है कि सूर्यास्त के बाद यदि किसी का निधन होता है तो मृत शरीर को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि मृत व्यक्ति की आत्मा वहीं पर भटकती रहती है और अपनों के नजदीक रहकर उनको देखती रहती है। यह भी कहा जाता है कि मृत्यु के बाद शरीर से आत्मा प्रस्थान कर जाती है और खाली शरीर में कोई बुरी आत्मा प्रवेश न कर ले इसलिए मृतक को रात को अकेला नहीं छोड़ा जाता है। और विधि अनुसार मृत शरीर को तुलसी के पौधे के पास रखने का भी प्रावधान है।
इस तरह से विधि-विधान से अंतिम संस्कार करने पर आत्मा परमात्मा में विलिन होकर देवलोक में स्थान पाती है।

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