Friday, 11 April 2025

 
 
पंचायत तंत्र- । जनक नंदिनी एवं प्रभु श्रीराम की अर्द्धांगिनी सीताजी का वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को प्राकट्य हुआ था। यह दिन जानकी नवमी या सीता नवमी के रूप में देशभर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सर्वमंगलदायिनी माता सीता का व्रत करने वाली महिलाओं के अंदर धैर्य, त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते है साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ता है। महिलाओं को अपने पति की दीर्घायु और संतान के साथ पारिवारिक शांति एवं आरोग्यता के लिए भगवान श्रीराम-जानकी की पूजा जरूर करनी चाहिए । 
धर्मशास्त्रों के अनुसार इस पावन पर्व पर जो भी भगवान राम सहित माँ जानकी का व्रत-पूजन करता है उसे पृथ्वी दान का फल एवं समस्त तीर्थ भ्रमण का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है एवं समस्त प्रकार के दुखों, रोगों व संतापों से मुक्ति मिलती है। सीता नवमी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। कहते हैं इस दिन दिया गया दान कन्या दान और चारधाम तीर्थ के बराबर माना जाता है। सूर्य, अग्नि एवं चन्द्रमा का प्रकाश हैं सीता
सीता नवमी शुभ फलदायी है क्योंकि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु तो माता सीता लक्ष्मी का स्वरूप हैं। सीता नवमी के दिन वे धरा पर अवतरित हुई इस कारण इस सौभाग्यशाली दिन जो भी माता सीता की पूजा अर्चना प्रभु श्री राम के साथ करता है उन पर भगवान श्री हरि और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। माता सीता अपने भक्तों को धन, स्वास्थ्य, बुद्धि और समृद्धि प्रदान करती हैं। माँ सीता भूमि रूप हैं,भूमि से उत्पन्न होने के कारण उन्हें भूमात्मजा भी कहा जाता है। माता सीता के स्वरूप सूर्य, अग्नि और चंद्र माने जाते हैं। चन्द्रमा की किरणें विभिन्न औषधिओं को रोग निदान का गुण प्रदान करती हैं। ये चंद्र किरणें अमृतदायिनी सीता का प्राणदायी और आरोग्यवर्धक प्रसाद है। इस दिन माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा के साथ चंद्र देव की पूजा भी जरूर करनी चाहिए।
माँ सीताजी ने ही हनुमानजी को उनकी सेवा-भक्ति  से प्रसन्न  होकर अष्ट सिद्धियों तथा नव निधियों का स्वामी बनाया । रामचरितमानस में तुलसी दास जी ने सीताजी की वंदना करते हुए उन्हें उत्पत्ति,पालन और संहार करने वाली,क्लेशों को हरने वाली एवं समस्त जगत का कल्याण करने वाली राम वल्लभा कहा है ।अनेकों  ग्रंथ उन्हें जगतमाता,एकमात्र सत्य,योगमाया का साक्षात स्वरुप व समस्त शक्तियों की स्त्रोत तथा मुक्तिदायनी कहकर उनकी आराधना करते हैं । सीताजी  क्रिया-शक्ति,इच्छा-शक्ति और ज्ञान-शक्ति,तीनों रूपों में प्रकट होती हैं ।
इस दिन सुहाग की वस्तुओं का करें दान
रोली,अक्षत,कुमकुम,मोली एवं लाल और पीले पुष्प व मिठाई से भगवान राम और उनकी प्राणप्रिया सीताजी की पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके भक्तिभाव से पूजा करें।इस दिन श्रीराम-जानकी की पूजा में तिल या घी का दीपक जलाना अतिशुभ फलदायक है।सीता नवमी के दिन माता सीता को सोलह श्रृंगार एवं लाल चुनरी अर्पित करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जिन्हें संतान की कामना है वह इस दिन सीता स्रोत का पाठ जरूर करें। इसके बाद सियाराम का भोग लगाकर इन मन्त्रों का जाप करें।
ॐ सीतायाः पतये नमः ।।
और  श्रीसीता-रामाय नमः।।
ऐसे प्रकट हुई देवी सीता
सीता मां के जन्म से जुड़ी कथा का रामायण में उल्लेख किया गया है। इस कथा के अनुसार एक बार मिथिला राज्य में बहुत सालों से बारिश नहीं हो रही थी। वर्षा के अभाव में मिथिला के निवासी और राजा जनक बहुत चिंतित थे। उन्होंने ऋषियों से इस विषय़ पर मंत्रणा की तो उन्होंने कहा कि यदि राजा जनक स्वयं खेत में हल चलाएं तो इन्द्र देव प्रसन्न होंगे और बारिश होगी। राजा जनक ने ऋषियों की बात मानकर हल चलाया। हल चलाते समय उनका हल एक कलश से टकराया जिसमें एक सुंदर कन्या थी। राजा निःसंतान थे इसलिए वह बहुत हर्षित हुए और उन्होंने उस कन्या का नाम सीता रखा। सीता को जानकी और मिथिलेश कुमारी इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। इस प्रकार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता प्रकट हुईं थीं।

K.W.N.S.-  आज से दीवाली त्यौहार की शुरुआत हो गई है । दिवाली अर्थात लक्ष्मी जी का त्यौहार । इस त्यौहार में सभी की प्रार्थना और कामना होती है कि लक्ष्मी जी की कृपा उनपर बरसे । इस कृपा के लिए हम तमाम जतन भी करते हैं ।

आपकी इसी कामना के ध्यान में रख कर हम आपके लिए कुछ उपाय लाये हैं जिन उपायों से आप पर लक्ष्मी जी मेहरबान हो सकती हैं । ये उपाय कोई मंत्र-तंत्र न हो कर कुछ टोटके हैं । इन टोटकों से आपकी आर्थिक समस्या दूर होगी ऐसा हमारा विश्वास है ।

1. मंदिर में झाडू का गुप्तदान करें : प्रत्येक शुक्रवार को, प्रातःकाल, “बह्म मुहूर्त” (लगभग 4 बजे से सूर्योदय के पहले का समय) मे चुपचाप किसी मंदिर में एक नई झाडू रख आएं । सिर्फ इतना ध्यान रखें कि झाडू रखते हुए आपको कोई देखे ना । इसबार शुक्रवार को “धनतेरस” पड़ रहा है । यह उत्तम तिथि है झाडू के गुप्त दान की । शुक्रवार के अलावा किसी बड़े त्योहारों, जैसे, दीवाली, दशहरा, रामनवमी, दुर्गा अष्टमी इत्यादि पर भी आप झाडू का गुप्तदान कर सकते हैं ।

2. पीपल के पत्ते अपनी तिजोरी या पैसे रखने की स्थान पर रखें : प्रत्येक शनिवार को एक पीपल का पत्ता तोड़कर, उसे साफ़ पानी से धो लें । फ़िर उसे अपनी तिजोरी, पर्स या ऐसी जगह रख दें जहां आप अपने पैसे रखते हैं । फिर दूसरे शनिवार को यही प्रक्रिया दोहराते रहें । पुराने पीपल के रखे हुए पत्ते को किसी बहती नदी में डाल दें । बहती नदी में डालना सम्भव न हो तो किसी तालाब या कुएं में डाल दें । यह काम प्रत्येक शनिवार को करने से आपकी आर्थिक समस्या, धीरे धीरे दूर हो जाएगी ।

3. लक्ष्मी जी के वाहन “उल्लू” के दर्शन : दीवाली, लक्ष्मी पूजा के दिन यदि आप “उल्लू” देख लेते हैं तो आपकी आर्थिक समस्या हमेशा के लिए दूर तो होगी ही, इसके अलावा आपको कभी भी आर्थिक समस्या नहीं होगी ।

4. कभी भी बिस्तर पर खाना ना खायें : बिस्तर पर खाना खेने से लक्ष्मी हमसे नाराज़ होकर घर छोड़ देती हैं ।

5. रोज़ सूर्य को अर्ध दे : रोज़ सुबह उठकर, नहा धोकर, सूर्योदय पर, पूर्व की ओर मुँह कर, सूर्य को अर्ध (सूर्य को पानी डालना) ज़रूर दें । पृथ्वी में सूर्य ही साक्षात जीवित देव माने जाते हैं । आजकल लोगों को देरी से उठने की आदत हो गई है । यदि देर से भी उठते हैं तो भी नहा धोकर सूर्य को अर्ध ज़रुर दे । पर याद रहे, 12 बजे के बाद सूर्य डूबने की स्तिथि में आ जाते हैं, इसलिये यदि अर्ध देते हैं तो पश्चिम की ओर मुँह करके अर्ध दें ।

6. सुबह बिस्तर से उतने के पहले करे ये : रोज़ सुबह उठकर, बिस्तर से नीचे उतरने से पहले अपनी दोनों हतेलियों को रगड़ लें । फ़िर ऊपर से गोल घूमते हुए एक चक्र लें और हतेलियों को चेहरे पर घुमाएं (जैसे हम चेहरे पर पाउडर लगते है) । यह क्रिया दो बार करें । इसके बाद ही इधर उधर या अन्य चीजें देखें ।

7. आईना बिस्तर के सामने ना हो : आपका बिस्तर कभी भी ऐसा ना हो कि आप उठते ही अपनी शक्ल उसमे देख सकें । इससे हानि होती है ।

इन सब उपायों में से कोई एक भी करें तो धीरे धीरे दूर हो जाएगी आपकी आर्थिक समस्या । ये सभी उपाय, बहुत जल्द असर करेंगे, ये तय है ।

 
गरियाबंद । देवभोग में लंकेश्वरी देवी की परिक्रमा के बाद रावण के दहन करने की परंपरा चली आ रही है. कादाडोंगर में रावण दहन की सूचना पर 84 गांव की ग्रामदेवियों को एकत्रित किया जाता है. वनांचल आदिवासी राजाओं का गढ़ होने के कारण यहां देवियों की पूजा प्राथमिकता से की जाती है. विकासखंड के अधिकांश गांवों में अपनी ग्राम देवियों की पूजा होती है और लगभग प्रत्येक गांव में देवालय होता है. इसे देवीगुढ़ी कहते हैं कहा जाता है यह इलाका खर -दूषण के राज्य वाले दण्डाकारण्य का इलाका था । 
जमीदारों के अधीन इस इलाके में प्राचीन काल से ही देवी देवताओं को विशेष दर्जा दिया जाता था. उनमें से एक थी मां लंकेश्वरी जिन्हें राज देवी का ओहदा मिला हुआ है. मां लंकेश्वरीकी पूजा अर्चना की जाती है । 
बुजुर्ग जानकारों ने बताया कि लंकेश्वरी देवी ,लंका की रक्षा करने वाली लंकनी ही है, जो लंका प्रवेश करने वाले हनुमान के साथ युद्ध में हारकर दण्डाकारण्य इलाका भाग आई थीं. जमीदारों के पूर्वजों ने दक्षिण भारत के भ्रमन के दरम्यान देवी को यंहा से 20 किंमी दूर बरही में लाकर स्थापित किया था. आज भी लंकेश्वरी की पूजा बरही में होती है. 1987 को देवभोग गांधी चौक में अवस्थी परिवार द्वारा मंदिर निर्माण कर  यंहा स्थापित किया था. देवी का पट साल में एक दिन दशहरे को खुलता है. इस दिन लंकेश्वरी रावण दहन की अनुमति भी देती हैं । 
रावण वध का संदेश मिलते ही झूम उठते है देव
यंहा से 28 किंमी दूर कांदाडोंगर का दशहरा भी अनूठा है. विजय दशमी के दिन 84 गांव की ग्राम देवी पताका व पूरे परीधान में एकत्र होती हैं, डोंगर के नीचे सभी देव एकत्र होकर देव वाद्य में नृत्य करते हैं, और दशहरा सम्पन्न होता है. डोंगर के प्रमुख पुजारी मुकेश सिंह है । 
पजारी ने बताया कि दशहरा पर देव पूजन करने वाले वे 7वीं पीढ़ी के पुजारी हैं बताया कि इस दण्डकरण्य में  असुरों का आतंक था. राम रावण का युद्ध पर सभी देव की नजर थी,विजयदशमी को रावण वध कि सूचना मिलते ही ग्रांम देवी इसी कांदाडोंगर  के नीचे एकत्रित होकर खुशियां बाटी थी. आज भी उसी रस्म को पूरा करने विजय दशमी के दिन ग्राम देवी के साथ हजारों की तादात में ग्रामीणों की भीड़ जुटती है. और सत्य की जीत की खुशियां मनाकर एक दूसरे को विजय चिन्ह के रूप में सोंनपत्ति  भेंट करने का रिवाज है । 

 
 
रायपुर । नवरात्रि महापर्व पर माता रानी की पूजा अर्चना करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म में बताए गए मां के 9 स्वरूपों का अपना एक विशेष महत्व होता है. आज नवरात्रि के छठवें दिन मां नव दुर्गा के कात्यानी स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है. धार्मिक पुराणों के अनुसार देवी मां ने महिषासुर का मर्दन किया था. देवी कात्यायनी की पूजा करने से मन की शक्ति मजबूत होती है और साधक इन्द्रियों को वश में कर सकता है  । 
मां कात्‍यायनी की पूजा विधि
नवरात्रि के छठे दिन यानी कि षष्‍ठी को स्‍नान कर लाल या पीले रंग के वस्‍त्र पहनें.
 सबसे पहले घर के पूजा स्‍थान नया मंदिर में देवी कात्‍यायनी की प्रतिमा या चित्र स्‍थापित करें.
 अब गंगाजल से छिड़काव कर शुद्धिकरण करें.
अब मां की प्रतिमा के आगे दीपक रखें
 अब हाथ में फूल लेकर मां को प्रणाम कर उनका ध्‍यान करें.
 इसके बाद उन्‍हें पीले फूल, कच्‍ची हल्‍दी की गांठ और शहद अर्पित करें.
धूप-दीपक से मां की आरती उतारें.
 आरती के बाद सभी में प्रसाद वितरित कर स्‍वयं भी ग्रहण करें.
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
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