- रायपुर
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सरकारी आदेशों की उड़ रही धज्जियां: निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर, गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों पर भारी शिक्षा का बोझ
रोक के बाद भी निजी प्रकाशकों के पुस्तक खरीदने बाध्य कर रहे निजी स्कूल प्रबंधन
सरकारी आदेश की अवहेलना कर रहे निजी स्कूल
परदेशिया स्कूल मालिक लूट रहे देशी ठेठ मूल गरीब छत्तीसगढिय़ा परिवारों को
मनमाना डोनेशन और फीस लेने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार परदेशिया स्कूल मालिक
बड़े-बड़े नेताओं के फोन के बाद भी भारी भरकम डोनेशन देने के लिए मजबूर मध्यमवर्गी परिवार
स्कूल फीस-ट्यूशन फीस मेटेंनेश फीस में भी की बढ़ी बढ़ोत्तरी, महंगाई से दम टूट रहा
अभिभावकों द्वारा मजबूरी दिखाने पर या फीस कम कराने की बात पर धमकी और टीसी ले जाने कहते हैं परदेशिया स्कूल मालिक

panchayattantra24.-रायपुर। नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत के साथ ही निजी स्कूल संचालकों की मनमानी शुरू हो गई है। सरकार के स्पष्ट आदेश के बावजूद स्कूल हृष्टश्वक्रञ्ज की किताबों के बजाय निजी प्रकाशकों की किताबें लगवा रहे हैं। सरकार ने निजी स्कूलों को हृष्टश्वक्रञ्ज की किताबें लगाने का निर्देश दिया है। इसके लिए बाजार में पर्याप्त किताबें भी उपलब्ध कराई गई हैं। लेकिन स्कूल संचालक कमीशन के लालच में निजी प्रकाशकों से गठजोड़ कर रहे हैं। वे अभिभावकों को विशेष दुकानों से ही किताबें खरीदने के लिए बाध्य कर रहे हैं।
इस साल किताबों के दाम में भारी वृद्धि देखी गई है। नर्सरी से कक्षा तीन तक की किताबें पिछले साल 2200-2500 रुपये में मिलती थीं, जो अब 3000-3500 रुपये हो गई हैं। कक्षा 5 से 8 तक की किताबें 5000-7000 रुपये में मिल रही हैं। कक्षा 9 और 10 की हृष्टश्वक्रञ्ज किताबें 850 से 1250 रुपये में उपलब्ध हैं, लेकिन स्कूल इनके साथ तीन अतिरिक्त निजी प्रकाशन की किताबें भी लगा रहे हैं। अभिभावक इस मनमानी से परेशान हैं और सरकार से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
एनसीईआरटी की किताबों से होगी पढ़ाई
निजी स्कूलों में मनमानी किताबों को लेकर जिला शिक्षा कार्यालय ने एक आदेश जारी किया है, जिसके तहत जिले के सभी निजी स्कूल अब केवल एससीईआरटी (राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) और एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) की किताबों से ही छात्रों को पढ़ा सकेंगे। यानी निजी प्रकाशकों की रंग-बिरंगी और महंगी किताबें अब स्कूलों में नहीं चलेगी।
निजी विद्यालयों को दिए निर्देश
जिला शिक्षा कार्यालय ने निजी विद्यालयों के प्राचार्यों, विकासखंड शिक्षा अधिकारियों और नोडल प्राचार्यों के लिए जारी आदेश में कहा है कि छत्तीसगढ़ बोर्ड से मान्यता प्राप्त स्कूल: इन स्कूलों में छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा वितरित की जाने वाली मुफ्त किताबें पढ़ाई जाएंगी। वहीं, सीबीएसई से संबद्ध स्कूल इन स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें ही अनिवार्य होगी। किसी भी निजी प्रकाशक की किताबें न तो चलेंगी और न ही अभिभावकों को उन्हें खरीदने के लिए बाध्य किया जाएगा। इसके लिए सभी निजी स्कूलों को अपने नोडल प्राचार्य के सामने यह प्रमाण पत्र देना होगा कि वे इन आदेशों का पूरी तरह से पालन कर रहे हैं।
जूता, टाई-बेल्ट की बिक्री नहीं
कई निजी स्कूलों द्वारा अपने संस्था में ही जूता-मोजा, टाई-बेल्ट आदि की बिक्री की जाती है। जारी आदेश के अनुसार इस पर भी बैन लगा दिया गया है। रायपुर जिले में कोई भी निजी स्कूल अपनी संस्था में इन वस्तुओं की बिक्री नहीं कर सकेंगे और ना ही पालकों को बाध्य कर सकेंगे कि वे किसी दुकान विशेष से ही किताबें खरीदें। जिस पर संस्था द्वारा छात्रों को वाहन सुविधा उपलब्ध कराई जाती है उन्हें भी ना हानि ना लाभ के सिद्धांत पर वाहन चालन करने को कहा गया है। जिस बोर्ड से संस्था को मान्यता प्राप्त है उसका बोर्ड भी मुख्य द्वार पर स्कूलों को लगाना होगा।
आदेश हाई कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन
इस आदेश को लेकर छत्तीसगढ़ मैनेजमेंट स्कूल एसोसिएशन ने आपत्ति दर्ज कराई है एसोसिएशन का कहना है कि कई ऐसी किताबें हैं जो अशासकीय विद्यालय छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए पढ़ाते रहे हैं। दूसरी ओर एससीईआरटी की मुक्त किताबें अभी तक स्कूलों को नहीं मिल पाई हैं। ऐसे में इस आदेश का पालन करना मुश्किल है, क्योंकि निजी स्कूलों के नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत एक अप्रैल को हो गई है। ऐसे में तीन महीने बीतने को है, लेकिन फिर भी मुक्त की किताबें नहीं मिल पाई हैं।
एसोसिएशन का कहना है कि यह आदेश हाई कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है। एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने पत्र में कहा कि निजी प्रकाशकों की किताबों के उपयोग को लेकर पहले भी हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। न्यायालय ने तब स्कूल शिक्षा विभाग को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि यदि छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के सदस्य किसी अन्य किताब का उपयोग करते हैं तो उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। गुप्ता का कहना है कि कई अशासकीय विद्यालय अपने छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए विभिन्न निजी प्रकाशकों की किताबों का उपयोग करते हैं।
आयुष विवि ने मेडिकल परीक्षाओं के फीस दुगुने किए, छात्रों में रोष
निजी स्कूलों और यूनिवर्सिटी के तर्ज पर अब सरकारी विश्वविद्यालय और स्कूलें भी मनमानी पर उतर आए हैं। इनके द्वारा भी छात्रों और अभिभावकों को परेशान करने आए दिन मनमाने फैसले लिए जा रहे हैं। पं दिनदयाल उपाध्याय आयुष विश्वविद्यालय के विभिन्न मेडिकल कोर्स के सेमेस्टर परीक्षाएं इस महीने आयोजित की जा रही हैं इसके लिए एक जुलाई से सात जुलाई तक परीक्षा फार्म भरवाए जा रहे हैं। विवि ने मनमाने फैसले लेते हुए इस साल सेमेस्टर परीक्षाओं के फीस में सीधे दुगुने की वृद्धि कर दी है। एक बीएससी नर्सिंग के छात्र ने बताया कि पिछले सेमेस्टर परीक्षा के लिए उनसे कालेज ने 1559 रुपए के डीडी बनवाए थे अब वही फीस बढ़ाकर 3000 हजार कर दी गई है। इसी तरह हर कोर्स के लिए परीक्षा फीस दुगुनी कर दी गई है। विवि का यह फैसला गरीब और निर्धन छात्रों पर भारी पड़ रहा है। एसटी-एससी और ओबीसी छात्रों को स्कालरशिप मिलती है, रईस छात्रों पर इसका असर नहीं होगा लेकिन निर्धन और लोन लेकर पढ़ाई करने वाले छात्रों और अभिभावकों के लिए ऐसे फैसले बोझ बढ़ाने वाले हैं। विवि प्रबंधन के इस रवैये से इनमें रोष है।