रायपुर । राजधानी के सिविल लाइन थाना में आज छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना औऱ सिंधी समाज के लोगों के बीच झड़प हो गई. मामला क्रांति सेना के पदाधिकारी को पुलिस हिरासत में लेने का. जैसे क्रांति सेना के नेताओं को अपने साथी को हिरासत में लिए जाने की खबर मिली वे थाने पहुँच गए. थाने में उन्होंने बिना जुर्म पदाधिकारी को समाज विशेष के दवाब में हिरासत लेने का आरोप लगाने लगे. इसकी जानकारी लगते ही सिंधी समाज के लोग भी थाने पहुँच गए. इस दौरान क्रांति सेना और सिंधी समाज के लोग आमने-सामने हो गए और दोनों के बीच झड़प की नौबत आ गई ।
दरअसल, विवाद के पीछे वजह कुछ दिन पूर्व रैली-जुलूस के लिए प्रतिबंधित जय स्तंभ चौक में आयोजित रैली से जुड़ा है. सिंधी समाज की ओर झूलेलाल जयंती के मौके पर रैली निकाली जा रही थी. इस दौरान दौरान एंबुलेंस जाम फंस गई थी. जाम फंसे रैली को लेकर क्रांति सेना के सचिव ने फेसबुक लाइव किया था. लाइव के बाद में ढेर सारी आपत्तिजनक कमेंट्स आ गए. इसके बाद सिंधी समाज के लोगों ने इसे लेकर नाराजगी जाहिर की. समाज के कुछ लोगों ने फेसबुक पर आपत्तिजनक कमेंट को लेकर फेसबुक लाइव करने वाले क्रांति सेना के सचिव के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराई. शिकायत के बाद पुलिस ने आज क्रांति सेना के सचिव को हिरासत में ले लिया इसके बाद इस मामले में राजनीति गरमा गई है और बवाल मच गया है ।
छतीसगढ़िया क्रांति सेना के अध्यक्ष अमित बघेल ने कहा कि पुलिस के पास अपराधी को पकड़ने की फुर्सत नहीं है. रोज अपराध हो रहा हैं. बाहर से आये अपराधी लूट, हत्या, बलात्कार कर रहे हैं, लेकिन इन्हें पकड़ने के लिए पुलिस का हाथ पैर नही चल रहा. क्रांति सेना के संजीव साहू ने मानवतावश घटनाक्रम का फेसबुक लाइव किया. यह व्यस्ततम मार्ग है तो समाज द्वारा शक्ति प्रदर्शन करने की क्या जरूरत है. यह अपराध की श्रेणी में आ गया. इतने में सिंधी समाज का अपमान हो गया. परदेशिया 144 धारा को तोड़ेंगे तो उनके लिए जायज है, और छग का आदमी मानवता के नाते फ़ेसबुक लाइव चला दिया तो उसे गिरफ्तार थाने के आई और उस पर कार्रवाई की जा रही है ।

रायपुर । नक्सल हमले में मारे गए विधायक भीमा मंडावी की मौत मामले की बीजेपी जांच कराने की मांग कर रही है. इस मामले को लेकर विपक्ष लगातार सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है, तो वहीं बीजेपी के बड़े नेता बयानबाजी कर रहे है. लेकिन कांग्रेस के संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी ने बताया कि 10 अप्रैल को ही राज्य सरकार ने न्यायिक जांच कराने के लिए चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अनुमति मांगी है. आचार संहिता लगने की वजह से राज्य सरकार इसका ऐलान नहीं कर सकती. अनुमति मिलते ही राज्य सरकार भीमा मंडावी की मौत की न्यायिक जांच का कराने की आदेश देगी ।
शैलेश नितिन त्रिवेदी ने बताया कि राज्य सरकार ने भीमा मंडावी की हत्या की न्यायिक जांच की मांग की गई है. लेकिन बीजेपी इस पर राजनीति कर रही है उसे ऐसा नहीं करना था. राज्य सरकार ने निर्वाचन आयोग को लिखी चिठ्ठी को सार्वजनिक किया है. कांग्रेस इस घटना की पीड़ा और भयावहता को समझती है. क्योंकि कांग्रेस ने भी पहले नक्सली हमले में अपने नेता खोए है. निर्वाचन आयोग के आदेश के बाद न्यायिक जांच होगी. बीजेपी को निर्वाचन आयोग पर विश्वास करना चाहिए ।

रायपुर  । रितेश्वर महाराज लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मतदाताओं को जागरुक करने मतदाता जागरण महोत्सव आयोजित कर रहे हैं. रितेश्वर महाराज के मुताबिक, प्रजातंत्र व्यवस्था के अंतर्गत मतदान राष्ट्र प्रदत्त हमारा बड़ा अधिकार एवं सच्चे नागरिक तथा राष्ट्रभक्त के लिए एक अहम् एवं पुनीत कर्तव्य है. इस अभियान के तहत 13 अप्रैल को मनेंद्रगढ़ के राम मंदिर में कार्यक्रम आयोजित हुआ, जहां महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित किया. रितेश्वर महाराज का शनिवार शाम को कटघोरा में और रविवार को बिलासपुर में कार्यक्रम होगा ।

रायपुर । चिड़ियाघर के पिंजरे में बंद शेर की दहाड़ सुनकर बच्चा भी नहीं दहलता और छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का दावा करने वाले किसी भी राजनीतिज्ञ के बयान पर प्रदेश की जनता का अब ऐतबार नहीं रहता. यही कारण है कि देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह की छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान नक्सलियों के खिलाफ गुर्राहट बस्तर में फुसफुसाहट भर का भी असर छोड़ पाने में नाकाम रही ।
पांच साल से देश के गृहमंत्री पद का दायित्व संभाल रहे राजनाथ सिंह का गत दिवस दुर्ग में क्रोध से भरा बयान आया कि ‘भाजपा विधायक भीमा मंडावी की नक्सलियों द्वारा की गई हत्या से मैं बेहद दुखी हूं और इन हत्यारों को छोडूंगा नहीं.’ गृहमंत्री का यह लहजा छत्तीसगढ़ की आवाम में कोई भरोसा या उम्मीद जगा पाने में इसलिए नाकाम है क्योंकि पांच साल तक गृहमंत्री रह चुकने के बाद भी झीरम नरसंहार के दोषियों को सजा दिलाना तो दूर उसके लिए जिम्मेदार लोगों को पहचान पाने तक में वह नाकाम रहे हैं. नक्सली मोर्चे पर भी उनके खाते में शून्य बटा सन्नाटा ही दर्ज है ।
चार दशक से बस्तर में नक्सली नासूर बन भोले-भाले आदिवासियों के जीवन में भय का और सरकारों के लिए तनाव का कारण बने हुए हैं. किसी समय इन नक्सलियों को भटके हुए युवा करार देने वाले तमाम प्रगतिशील राजनीतिज्ञ भी पिछले कुछ समय से हिंसक घटनाओं के अतिरेक से आखिरकार इन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा मानने को तैयार हो गए. लेकिन, इस स्वीकार्यता के बाद भी राजनीतिक स्वार्थों की खातिर तमाम राजनीतिक दल ‘बुलेट बनाम बैलेट’ की लड़ाई में एक साथ आने को तैयार नहीं हैं ।
तीन दिन पहले दंतेवाड़ा के विधायक भीमा मंडावी पर हुआ नक्सली हमला क्या महज एक भाजपा नेता पर हमले की निगाह से देखा जाना न्यायोचित है? पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और बृजमोहन अग्रवाल को जहां इसमें राजनीतिक साजिश दिखाई दे रही है वहीं मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पुलिस अधिकारियों के तर्कों से सहमत हो इसे विधायक की लापरवाही का नतीजा करार दे देने को तत्पर रहे हैं. निश्चित ही यह दोनों दलीलें तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं ।
अगर भीमा मंडावी पर हमला राजनीतिक साजिश है तो फिर छह साल पूर्व घटित झीरम हादसे को भी महज नक्सली हमला कैसे स्वीकार कर लिया जाए? जिस हमले में कांग्रेस नेतृत्व की एक पीढ़ी ही पूरी तरह खत्म हो गई. राजनाथ सिंह के बयान के प्रति अविश्वास और आक्रोश भी इसलिए है क्योंकि पांच साल में वह इस जघन्य हत्याकांड में मामले में कुछ भी ठोस करके दे पाने में नाकाम रहे, लेकिन आज आपके पार्टी के विधायक के साथ यह घटना घटित हो गई तो आपके बाजू फड़कने लगे. नक्सली वारदातों को यदि जिम्मेदार राजनीतिज्ञ ही अगर दलगत हित के आधार पर देखते रहेंगे तो लोकतंत्र का सूली पर चढ़ जाना तय ही है ।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दलील है कि इलाके के थानेदार ने भीमा मंडावी को इस मार्ग पर जाने से रोका था, लेकिन वह नहीं माने और यह सब घटित हो गया. अगर यह दलील सही भी है तो भी इलाके की पुलिस को क्लीन चिट देने की इतनी जल्दबाजी की जरूरत क्या थी क्या यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि जब चुनाव के चलते अस्सी हजार पुलिस और अर्ध सैनिक बलों के जवान वहां मौजूद थे, तो नक्सली इतनी मात्रा में विस्फोटक का उपयोग कैसे कर पाए उस इलाके में तो हथियारों की कोई फैक्ट्री भी नहीं है फिर भी इन अपराधियों के पास इस किस्म के अत्याधुनिक हथियार हममें से किसकी गद्दारी से इनके पास पहुंच जाते हैं ।
भीमा मंडावी पर जब हमला हुआ तो उनकी गाड़ी अकेली थी. पायलट और फालो वाहन उनसे इतने अधिक पीछे क्यों रह गए ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब अनुत्तरित हैं. लेकिन इन सवालों की आड़ में सरकार को संलिप्त ठहराने की कोशिश राजनीतिक अवसरवाद ही मानी जाएगी. ठीक वैसे ही जैसे झीरम में रमन सरकार को शामिल बताया जाना. क्योंकि चाहे बात डा. रमन सिंह की हो या भूपेश बघेल की, उनका सार्वजनिक जीवन और आचरण किसी को यह सवाल उठाने की इजाजत नहीं देता कि वह राजनीतिक लाभ के लिए कभी भी ऐसी राह चुन सकते हैं ।
यह बात समझने की जरूरत हममें से हर एक को है कि बस्तर में नक्सलियों की बंदूक से निकली गोली से कोई व्यक्ति भर नहीं मरता है। झीरम में शहीद होने वाले महज कांग्रेसी नहीं थे और ना भीमा मंडावी केवल भाजपाई ही थे. यह सब हमारे भाई थे जिनका विश्वास लोकतंत्र पर था. नक्सली बनाम लोकतंत्र की लड़ाई में जीत की उम्मीद ‘लोक’ तभी कर सकता है जब ‘तंत्र’ स्वार्थ त्याग कर एक राय हो कंधे से कंधा मिलाकर मैदान में उतरे. यह समय एक दूसरे के खिलाफ बयान देकर राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति करने का नहीं है, निर्णायक लड़ाई के लिए आमजन और सुरक्षा बलों का आव्हान करने का है ।
संकट के क्षणों में कर्तव्य पालन का उदाहरण सीखने के लिए हमारे राजनीतिज्ञों को कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है. भीमा मंडावी के पिता और उनकी पत्नी का उदाहरण हमारे सामने है, जिन्होंने अपने पुत्र और पति की मौत के महज छत्तीस घंटे बाद ही बेखौफ मतदान कर साहस और कर्तव्य पालन की जो मिसाल कायम की है, उस पर हर भारतीय गर्व महसूस कर सकता है ।
क्या यह बेहतर ना होता कि भीमा मंडावी की अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए अलग-अलग साधनों से दंतेवाड़ा पहुंचे भूपेश बघेल और डा. रमन सिंह एक साथ वहां पहुंचते. हमले के बाद उपजी परिस्थितियों की समीक्षा के लिए सभी दलों के प्रमुखों को भी साथ बिठाया जाता. नक्सली हिंसा के खिलाफ बयान अलग-अलग जारी करने की जगह इन नेताओं ने साथ बैठकर जारी किया जाता. स्मरण रहे कि ‘अनेकता में एकता ’ की बुनियाद पर ही भारत का वजूद है. हुक्मरानों में अगर यह सामूहिकता का भाव रहता हो तो जनता के भीतर भी यह भाव बना रहता कि….वह सुबह कभी तो आएगी. अभी तो बस वह क्रुद्ध हैं और हम क्षुब्ध ।

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