रायपुर । 6 साल पहले 25 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी के परिवर्तन यात्रा को निशाना बनाया था, जिसमें महेंद्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल समेत कांगेस के कई बड़े नेता शहीद हो गए थे।
इस घटना के बाद यह दूसरी बड़ी घटना है, जिसमें माओवादियों ने दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी के काफिले को निशाना बनाया है। भाजपा के साथ ही कांग्रेसी नेताओं के बीच भी सामान्य रूप से लोकप्रिय आदिवासी नेता भीमा मंडावी का पीछा दुर्भाग्य ने अंतिम समय तक नहीं छोड़ा।
बाइक से गिरकर पत्नी की मौत, बेटी ने कूदकर की आत्हत्या
2018 में बतौर विधायक उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई थी, लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही उनकी पत्नी बाइक से गिरकर दुर्घटना में मौत की शिकार हो गई। इसके कुछ समय बाद ही उन्होंने अपनी बेटी को भी खो दिया था।
उनकी बेटी ने हॉस्टर की छत से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। भीमा मंडावी की बेटी 14 वर्षीय मोना शहर के मयूर स्कूल में नौवीं कक्षा की छात्रा थी। मयूर स्कूल ने शंकर नगर स्थित आदित्य हाईट के चौथे और पांचवी मंजिल को छात्रावास के लिए किराए पर लिया था। यहीं से कूदकर मोना ने जुलाई 2013 में आत्महत्या की थी। मां के मौत के कारण मोना मानसिक रूप से परेशान थी। बताया जाता है कि भीमा मंडावी अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे बेटी के जाने से उन्हें गहरा सदमा लगा था।
दूसरी पत्नी सहित 3 बच्चे
पहली पत्नी की मृत्यु के बाद भीमा ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी पतनी कांकेर जिले के माकड़ी की रहने वाली हैं। अभी स्व. मंडावी के परिवार में पत्नी समेत 2 बेटियां और 1 पुत्र है। नक्सलियों के खतरे के चलते वे दंतेवाड़ा के चितालंका में मकान बनाकर रह रहे थे।
उनका छात्र जीवन भी संघर्ष भरा रहा। गदापाल के जिस गांव से वे कई साल तक पंचायत सचिव रहे,उस गांव के पूर्व पंचायत सचिव नंदलाल ताती के दंतेवाड़ा के निवास में रहकर ही उन्होंने पढ़ाई की। 10वीं तक की पढ़ाई दंतेवाड़ा में करने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए फरसगांव गए। एमए की डिग्री उन्होंने यहां हासिल की।
देवती को हराकर दोबारा बने विधायक
2013 के चुनाव में फिर से भीमा को टिकट मिली, लेकिन देवती कर्मा से वे चुनाव हार गए। 2018 के चनुाव में देवती कर्मा को हारकार वे बस्तर संभाग के इकलोते भाजपा के जीतने वाले विधायक बने। बस्तर की 12 सीटों में से केवल दंतेवाड़ा में ही भाजपा को जीत हासिल हुई थी। अपने क्षेत्र में वे बहुत लोकप्रिय थे। व्यक्ति गत परेशानियों के ाबद भी उन्होंने अपन काम पर कभी भी इसका आसर पड़ने नहीं दिया। लोगों की मदद के लिए वे हमेश तैया रहते थे।
पंचायत सचिव से विधायक बने थे भीमा
41 साल केि भीमा मंडावी का राजनैतिक सफर अचानक शुरू हुआ। जब वे दंतेवाड़ा के समीप गदापाल में पंचायत सचिव थे, उस दौरान पंचायत सचिव संघ के अध्यक्ष भी बने। उनका रूझान छात्र जीवनल से ही राजनीति की ओर रहा। पहला चुनाव ही बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा के खिलाफ 2008 में लड़ने का उन्हें अवसर भारतीय जनता पार्टी से मिला, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की।