Wednesday, 17 September 2025

 K. W. N. S. - दिल्ली l देश के चुनाव आयोग ने महाराष्‍ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया है l इन राज्यों के चुनाव के साथ ही 18 राज्‍यों की 64 सीटों पर भी उपचुनाव कराये जाएंगे l

खास बात ये है कि इस बार चुनाव आयोग ने होने वाले चुनाव में उम्‍मीदवारों के खर्च की सीमा 28 लाख रुपये तय कर दी है lइससे ज्यादा खर्च करने वाले उम्मीदवारों को कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा l

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि इन चुनावों में  उम्‍मीदवारों के चुनावी खर्चे पर निगरानी रखी जाएगी. इतना ही नहीं उम्‍मीदवारों को 30 दिन में खर्च का हिसाब देना होगा lउम्‍मीदवार 28 लाख रुपये से अधिक खर्च नहीं कर सकते l

K. W. N. S. - नई दिल्ली - सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विनय कुमार गर्ग और एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव ने बताया कि सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स के नियम 139 में प्रावधान किया गया है कि वाहन चालक को दस्तावेजों को पेश करने के लिए  15 दिन का समय दिया जाएगा. ट्रैफिक पुलिस तत्काल उसका चालान नहीं काट सकती है.
डीएल-आरसी नहीं दिखाने पर तत्काल चालान नहीं काट सकती ट्रैफिक पुलिस, ये है कानून 
 
नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू होने के बाद से वाहन का रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट (आरसी), इंश्योरेंस सर्टीफिकेट, पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस और परमिट सर्टिफिकेट तत्काल नहीं दिखाने पर ताबड़तोड़ चालान करने की खबरें आ रही हैं. हालांकि सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स के मुताबिक अगर आप ट्रैफिक पुलिस को मांगने पर फौरन रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी), इंश्योरेंस सर्टिफिकेट, पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) और परमिट सर्टिफिकेट नहीं दिखाते हैं, तो यह जुर्म नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विनय कुमार गर्ग और एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव ने बताया कि सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स के नियम 139 में प्रावधान किया गया है कि वाहन चालक को दस्तावेजों को पेश करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाएगा. ट्रैफिक पुलिस तत्काल उसका चालान नहीं काट सकती है. इसका मतलब यह हुआ कि अगर चालक 15 दिन के अंदर इन दस्तावेजों को दिखाने का दावा करता है, तो ट्रैफिक पुलिस या आरटीओ अधिकारी वाहन का चालान नहीं काटेंगे. इसके बाद चालक को 15 दिन के अंदर इन दस्तावेजों को संबंधित ट्रैफिक पुलिस या अधिकारी को दिखाना होगा.
एडवोकेट श्रीवास्तव ने यह भी बताया कि मोटर व्हीकल एक्ट 2019 की धारा 158 के तहत एक्सीडेंट होने या किसी विशेष मामलों में इन दस्तावेजों को दिखाने का समय 7 दिन का होता है. इसके अलावा ट्रैफिक कानून के जानकार लॉ प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे का कहना है कि अगर ट्रैफिक पुलिस आरसी, डीएल, इंश्योरेंस सर्टीफिकेट, पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस और परमिट सर्टिफिकेट तत्काल नहीं दिखाने पर चालान काटती है, तो चालक के पास कोर्ट में इसको खारिज कराने का विकल्प रहता है.
सीनियर एडवोकेट गर्ग का कहना है कि अगर ट्रैफिक पुलिस गैर कानूनी तरीके चालान काटती है, तो इसका मतलब यह कतई नहीं होता है कि चालक को चालान भरना ही पड़ेगा. ट्रैफिक पुलिस का चालान कोई कोर्ट का आदेश नहीं हैं. इसको कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. अगर कोर्ट को लगता है कि चालक के पास सभी दस्तावेज हैं और उसको इन दस्तावेजों को पेश करने के लिए 15 दिन का समय नहीं दिया गया, तो वह जुर्माना माफ कर सकता है.
एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव ने बताया कि चालान में एक विटनेस के साइन होना भी जरूरी है. कोर्ट में मामले के समरी ट्रायल के दौरान ट्रैफिक पुलिस को विटनेस पेश करना होता है. अगर पुलिस विटनेस पेश नहीं कर पाती है, तो कोर्ट चालान माफ कर सकती है. उन्होंने बताया कि ज्यादातर मामलों में पुलिस विटनेस पेश नहीं कर पाती है और इसका फायदा चालक को मिलता है.

 K. W. N. S. - रायपुर- छत्तीसगढ़ में 82 फीसदी आरक्षण लागू हो गया है. राज्य सरकार ने अध्यादेश जारी कर दिया है lपिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम संशोधन अध्यादेश, 2019 के प्रस्ताव का अनुमोदन किया था l

अध्यादेश लागू होने के बाद राज्य में अब आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा lगौरतलब है कि राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, अनुसूचित जाति के लिए 13% और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण है lआर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार ने संसद में विधेयक पारित किया था, जिसके बाद से राज्य में भी सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग की जा रही थी l

रायपुर। अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य परंपरागत वन निवासियों को उनके द्वारा काबिज वन भूमि की मान्यता देने के मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में दूसरा राज्य बन गया है। राज्य में 4 लाख से अधिक व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रकों का वितरण कर 3 लाख 42 हजार हेक्टेयर वनभूमि पर मान्यता प्रदान की जा चुकी है वहीं सामुदायिक वनाधिकारों के प्रकरणों में 24 हजार से अधिक प्रकरणों में सामुदायिक वनाधिकार पत्रकों का वितरण करते हुए 9 लाख 50 हजार हेक्टेयर भूमि पर सामुदायिक अधिकारों की मान्यता दी गई है।
 
भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वनाधिकार पत्रकों के वितरण के मामले ओडिशा और वन भूमि की मान्यता प्रदान करने के मामले में महाराष्ट्र राज्य पहले नंबर पर है जबकि इन दोनो ही मामलें में छत्तीसगढ़ राज्य का पूरे देश में दूसरा स्थान है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कार्यभार संभालते ही 23 जनवरी को वन अधिकारों को लेकर राजधानी रायपुर में राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन कर इसके क्रियान्वयन की समीक्षा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी पात्र दावाकर्ताओं को उनका वनाधिकार मिले यह राज्य सरकार ही प्राथमिकता है । इसके साथ ही पर्याप्त संख्या में प्रत्येक गांव में निवासियों को वनभूमि पर वर्णित सामुदायिक अधिकार जैसे निस्तार का अधिकार, गौण वन उत्पादों पर अधिकार, जलाशयों में मत्स्य आखेट तथा उत्पाद के उपयोग, चारागाह का उपयोग, सामुदायिक वन संसाधन का अधिकार आदि प्राप्त हो सके।  मुख्यमंत्री श्री बघेल इसके साथ ही 30 मई को बस्तर संभागीय मुख्यालय जगदलपुर में और 3 जून को सरगुजा संभागीय मुख्यालय अंबिकापुर में वनाधिकार की संभागीय कार्यशालाओं में स्वयं उपस्थित होकर इसके क्रियान्वयन को लेकर मार्गदर्शन दिया ताकि मैदानी स्तर पर कार्यरत अमलों का उत्साहवर्धन हो सके।
 
इन कार्यशालाओं में प्रदेश के मंत्रीगण, सांसद-विधायकगण, प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ वन अधिकारांे के क्षेत्र में कार्यरत अशासकीय संगठनों के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहें। कार्यशाला में यह बात उभर सामने आयी की प्रक्रियागत कमियों की वजह से बड़ी संख्या में वन अधिकार के दावे निरस्त हुए है। इस पर मुख्यमंत्री श्री बघेल ने अस्वीकृत आवेदनों की समीक्षा करने और अन्य परंपरागत वन निवासियों को भी पात्रतानुसार वनाधिकार प्रदान करने के साथ ही पर्याप्त संख्या में सामुदायिक वनाधिकारों को मान्यता देने के लिए विशेष प्रयास करने के निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री ने सबसे निचले स्तर पर कार्यरत वन अधिकार समितियों के सशक्तिकरण पर भी बल दिया है।
 
जिसके फलस्वरूप प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा सभी जिला कलेक्टरों को वन अधिकारों के समुचित क्रियान्वयन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए है। जिसमें ग्राम स्तर पर वन अधिकार समितियों के पुनर्गठन करने को कहा गया है। इसके साथ ही अनुभाग और जिला स्तरीय समितियों के गठन के लिए राज्य शासन द्वारा आदेश जारी कर कर दिया गया है। इन समिमियों के पुनर्गठन और इनके प्रशिक्षण के बाद प्राप्त सभी दावों पर पुनर्विचार कर उनका निराकरण किया जाएगा। पहले चरण में उन दावों को लिया जाएगा जिन्हें पूर्व में अस्वीकृत किया गया है। प्रदेश में ऐसे दावों की संख्या 4 लाख से भी अधिक है। दूसरे चरण में ऐसे दावों की समीक्षा की जाएगी जिनमें वन अधिकार पत्रक वितरित तो किए गए है किन्तु दावा की गई भूमि और मान्य की गई भूमि के रकबे में अंतर है।
 
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ जनजाति बाहुल्य राज्य है। राज्य की कुल जनसंख्या का 32 प्रतिशत से अधिक संख्या जनजातियों की है। प्रदेश में निवासरत अनुसूचित जनजातियां जल, जंगल, जमीन से नैसर्गिक तथा परंपरागत रूप से सदियों से जुड़ी रही है और अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में इनकी रक्षा और संरक्षण भी करती रहीं है। परंपरागत रूप से अपनी आजीविका और निवास के रूप में वन भूमि पर पीढ़ियों से काबिज है। ऐसे स्थानीय समुदायों को काबिज भूमि पर मान्यता देने के लिए और उनके अधिकारों को अभिलिखित करने के उद्देश्य से वन अधिकार अधिनियम-2006 लागू किया गया है।
R.O.NO. 13259/163
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