K. W. N. S. - बिलासपुर। आदिवासी समाज प्रकृति की पूजा करते हैं। पेड़-पौधे उनके देवता हैं। उनकी हर गतिविधि में प्रकृति की छाप दिखती है। उनके कारण ही जंगल बचा है। प्रकृति के साथ संतुलन बनाने के लिये आदिवासी विभिन्न पर्व मनाते हैं। यह किसी अन्य समाज में नहीं होता। प्रकृति प्रेम आदिवासी समाज में कूट-कूटकर भरा है। ऐसा कहना है छत्तीसगढ़ प्रदेश की राज्यपाल अनुसुईया उईके का।
उन्होंने आज गोंडवाना समाज के नवाखाई कार्यक्रम एवं सामाजिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह विचार व्यक्त किया। तोरवा के सिंधु भवन में आयोजित गोंड़वाना समाज के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि आदिवासी समाज की प्रकृति सरलता, स्वाभिमान और भोलापन है। इसी प्रकृति के कारण उन्हें शोषण का शिकार बनाया जाता है। वे अपने अधिकारों से वंचित हैं। आदिवासियों के दर्द और तकलीफ को देखकर ही उन्होंने नौकरी छोड़ी और राजनीति में आकर उनकी सेवा के लिये तत्पर हैं। जो विश्वास और उम्मीद उनसे की गई है, वे उन्हें पूरा करने की कोशिश करेंगी।