Thursday, 13 March 2025

 
 बिलासपुर। एक हजार करोड़ के एनजीओ घोटाला मामले में IAS अधिकारी बीएल अग्रवाल और सतीश पाण्डेय को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने दोनों नौकरशाहों की रिव्यू पेटीशन खारिज कर दिया है । 
आपको बता दे कि समाज कल्याण विभाग में कागज पर फर्जी संस्था बनाकर 1 हजार करोड़ का घोटाला करने का मामला उजागर है. इस मामले में सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने संस्था जुड़े रहे अधिकारियों के ख़िलाफ़ सीबीआई को 7 दिनों में एफआईआर करने के निर्देश दिए थे । 
आरोपियों में कई वर्तमान और कई पूर्व आईएएस अधिकारी शामिल हैं. इसमें बीएल अग्रवाल का नाम भी है. घोटाले के मामले में फंसे कई अन्य आरोपी अधिकारियों ने भी कोर्ट में रिव्यू पीटिशन लगाया है. बीएल अग्रवाल द्वारा दायर किये गए रिव्यू पेटीशन की सुनवाई जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस पीपी साहू के बेंच ने की. कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 3 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था । 
 

 
 
 
बिलासपुर । बिलासपुर हाईकोर्ट ने आज भ्रष्टाचार के एक बड़े मामले में केन्द्रीय मंत्री, दर्जन भर आईएएस समेत कुल करीब ढाई दर्जन लोगों के खिलाफ एफआईआर करने के आदेश दिए हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि देश में आईएएस के खिलाफ भ्रष्टाचार के बड़े पांच मामलों में यह भी शामिल हो गया है। समझा जा सकता है कि इस मामले में कितने बड़े लोग शामिल हैं।
याचिका के अनुसार, इस पूरे भ्रष्टाचार की नींव 2004 में रखी गई थी। राजधानी से लगे माना 4000 दिव्यांगों के उपचार के नाम पर करोड़ों रूपए खर्च किए गए, लेकिन सारा हिसाब किताब केवल कागजों में मिला। इस मामले में तात्कालीन पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग मंत्री रेणुका सिंह के अलावा कई अफसरों के नाम सामने आए हैं। खास बात यह है कि चीफ सिकरेट्री स्तर पर काम कर चुके कुछ सीनियर अफसरों के नाम भी हाईकोर्ट के आदेश पत्र में उल्लेखित हैं।
इस मामले के याचिकाकर्ता रायपुर निवासी कुंदन ठाकुर हैं। बताया जाता है दिव्यांगों के उपचार के नाम पर सरकारी तंत्र ने जब करोड़ों रूपए की घोटालेबाजी की, तो उसमें कुंदन ठाकुर का भी नाम था। कुंदन ठाकुर को रिकॉर्ड में कर्मचारी बताकर वेतन के रूप में कुंदन के नाम पर रूपए आहरित किए जा रहे थे। जब इसकी भनक कुंदन को लगी, तो उन्होंने अपने स्तर पर जानकारी जुटाकर हाईकोर्ट में एक अर्जी दाखिल की। हाईकोर्ट के एकलपीठ न्यायमूर्ति मनीन्द्र श्रीवास्तव ने इस प्रकरण की प्रारंभिक सुनवाई के बाद माना कि यह साधारण मामला न होकर जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करने योग्य है। इसलिए आगे की सुनवाई युगलपीठ ने की। याचिकाकर्ता के वकील देवर्षि ठाकुर ने बताया कि हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू के युगलपीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया है।
आपको बता दें, हाईकोर्ट में यह मामला सन 2017 से चल रहा है। इस बीच अदालत ने कई बार शासन से इस संबंध में जवाब भी मांगा। न्यायालयीन सूत्रों के अनुसार, एक शपथपूर्वक जवाब में शासन ने यह स्वीकार भी किया है कि ऐसी गड़बड़ी दोबारा ना हो, इसके लिए समुचित व्यवस्था और सावधानी सुनिश्चित की जाएगी।
जैसे ही इस मामले में हाईकोर्ट का फैसला आया, इसकी खबर बार-बेंच से निकलकर विपक्ष, प्रशासन और सत्ता के गलियारों तक जंगल में लगी आग की तरह फैल गई। आला पदों पर रहे मंत्री, अफसरों पर एकमुश्त सप्ताह भर के भीतर एफआईआर दर्ज करने के हाईकोर्ट के निर्देश ने हर जगह हड़कंप मचा दिया। दरअसल, इसमें प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत दिव्यांगों के नाम पर बजट लेने वाले कई एनजीओ और उनके कर्ताधर्ताओं के नाम भी सामने आने की संभावना है। इसीलिए हाईकोर्ट के इस निर्देश के कारण छत्तीसगढ़ के कई एनजीओ और कई स्वयंसेवी संस्थाओं में भी खलबली मची हुई है। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर का अनुमान है कि पूरे देश में आईएएस के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के पांच बड़े मामलों में से एक छत्तीसगढ़ का एक मामला यह भी है। 

 Chhattisgarh High Court : अंतागढ़ मामले में जोगी पिता-पुत्र को राहत, झीरम मामले में याचिका खारिज
बिलासपुर । छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल लाने वाले अंतागढ़ टेप कांड मामले में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी व उनके पुत्र अमित जोगी को अदालत से बड़ी राहत मिली है। इस मामले में उनकी अग्रिम जमानत याचिका हाईकोर्ट ने मंजूर कर ली है। दूसरी तरफ झीरम घाटी हत्याकांड की जांच कर रहे आयोग के फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ शासन की याचिका को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने भी खारिज कर दिया है। बता दें कि अंतागढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान वहां से उम्मीदवार रहे मंतूराम पवार की खरीद-फरोख्त का मामला सामने आया था। चुनाव के दौरान मंतूराम को पैसे लेकर चुनाव न लड़ने का प्रलोभन दिया गया था। इसे लेकर हुई बातचीत का टेप बाद में सार्वजनिक हुआ और यह मामला सामने आया। इसे लेकर रायपुर में दोनों के खिलाफ कांग्रेस नेता व पूर्व महापौर किरणमई नायक ने एफआईआर दर्ज कराई थी।
इस मामले में कुल पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बाद में मंतूराम इस मामले में सरकारी गवाह बन गए। उन्होंने इस मामले को लेकर बाद में एक प्रेस वार्ता भी की थी, जिसमें उन्होंने जोगी पिता-पुत्र सहित पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह पर कई गंभीर आरोप लगाए थे।
रायपुर के पंडरी थाने में दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें अग्रिम जमानत के लिए दोनों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जस्टिस अरविंद सिंह चंदेल की सिंगल बेंच में बुधवार पर लगा था पूरा मामला।
झीरम जांच आयोग पर डिवीजन बेंच ने खारिज की याचिका
झीरम घाटी हत्याकांड की जांच कर रहे आयोग के फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ शासन की याचिका को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने भी खारिज कर दिया है। इस फैसले के बाद सरकार अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।
शासन ने जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता वाले झीरम न्यायिक जांच आयोग के खिलाफ याचिका लगाई थी। शासन ने जांच आयोग द्वारा आवेदन को खारिज करने के बाद पहले सिंगल बेंच और सिंगल बेंच से खारिज होने के डीविजन बेंच में याचिका लगाई थी। डिवीजन बेंच ने भी सरकार का आवेदन ये कहते हुए खारिज कर दिया कि आयोग अपना फैसला लेने के लिए सक्षम है। उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
आयोग ने राज्य शासन के पांच लोगों की गवाही, एक टेक्निकल एक्सपर्ट की गवाही सहित तीन आवेदनों को निरस्त कर दिया था। इसके साथ ही शासन ने झीरम मामले की सुनवाई दोबारा शुरू करने की भी मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी।
चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच ने इस मामले में बीते सोमवार को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा लिया था। याचिका खारिज होने के बाद महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने कहा कि तकनीकी आधार पर याचिका अस्वीकार हुई है। राज्य सरकार हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।

 
 बिलासपुर । झीरम घाटी हत्याकांड की जांच कर रहे आयोग के फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ शासन की याचिका को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने भी खारिज कर दिया है. इस फैसले के बाद सरकार अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है । 
शासन ने जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता वाले झीरम न्यायिक जांच आयोग के खिलाफ याचिका लगाई थी, शासन ने जांच आयोग द्वारा आवेदन को खारिज करने के बाद पहले सिंगल बेंच और सिंगल बेंच से खारिज होने के डीविजन बेंच में याचिका लगाई थी, लेकिन डिवीजन बेंच ने भी सरकार का आवेदन ये कहते हुए खारिज कर दिया कि आयोग अपना फैसला लेने के लिए सक्षम है, उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता । 
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