रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद से ही यह लगने लगा था कि भाजपा लोकसभा में प्रत्याशियों के चेहरे बदल देगी। इसके संकेत पिछले शनिवार को दिल्ली में आयोजित भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक से भी मिले।
इस बैठक में कोई फैसला नहीं हो पाया था लेकिन सभी सीटों पर पैनल तैयार किया गया था। अगले दिन रविवार को अमित शाह पहुंचे और उन्होंने सूची देखी। सूची में सिटिंग एमपी के साथ एक नाम और था बस। शाह ने सूची फाड़कर फेंक दी। कहा दूसरी सूची लेकर आओ। इसमें सांसदों के नाम नहीं रहेंगे।
सांसदों का टिकट कटने की घोषणा तो सोमवार को ही हो जाती मगर उसी दिन गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का निधन हो गया और निर्णय एक दिन के लिए टल गया। मंगलवार को केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद पार्टी ने टिकट काटने की घोषणा कर दी। अब सांसद और उनके समर्थक यहां रोना धोना चाहे जो मचाएं। लगता नहीं कि पार्टी का फैसला बदलेगा।
भाजपा आलाकमान का मानना है कि चुनाव तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और काम पर लड़ा जाएगा। वर्षों से कुर्सियों पर जमे नेताओं की टिकट काटकर आम कार्यकर्ताओं को सामने लाने से संदेश अच्छा जाएगा।
आलाकमान को यह भी लगता है कि सांसदों को सामने रखकर जनता के बीच जाने से मोदी फैक्टर का प्रभाव है उसका असर कम होने का खतरा है। दरअसल भाजपा मोदी सरकार की योजनाओं के बूते जनता के बीच जाने की तैयारी में है जबकि सांसदों ने इन योजनाओं को जनता तक ले जाने में कोई रुचि ही नहीं दिखाई।
सांसद आदर्श गांव हो या उज्ज्वला, पीएम आवास, स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाएं, सांसदों का इसमें कोई योगदान नहीं दिखता। केंद्रीय नेतृत्व से बार-बार पत्र लिखा गया फिर भी सांसद सक्रिय नहीं हुए।
अब दिक्कत यह है कि इन सांसदों के लिए अगर पार्टी वोट मांगने जाती तो जनता से केंद्रीय योजनाओं के फायदे पर बात करने में मुश्किल होती। अब नए चेहरे होंगे तो यह कहा जा सकता है कि पहले वाले ने काम नहीं किया इसीलिए मोदी जी ने बदल दिया।
भाजपा नेतृत्व के फैसले पर बगावत करने की हिम्मत सांसदों में नहीं दिख रही है। सांसदों ने गुप्त बैठक की लेकिन यह बात मानने को तैयार नहीं है। सुर यही है कि आलाकमान जो भी निर्णय लेगा हमें स्वीकार है। वैसे सांसद भी जानते हैं कि अगर उनकी सीट पर नए नेता आ गए तो उनका पत्ता हमेशा के लिए कट जाएगा। इसी बात की छटपटाहट दिख रही है
किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि सभी सांसदों का टिकट एकमुश्त कट जाएगा। माना जा रहा था कि तीन-चार सांसद टिकट बचाने में कामयाब हो जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भाजपा को लगता है कि मोदी फैक्टर इतना बड़ा है कि कोई विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। मोदी ने नाम पर कार्यकर्ता खुद ही बगावती नेताओं से निपट लेंगे।